कोरोना की दूसरी लहर के बाद देश के कई राज्यों में लगे प्रतिबन्धों ने आर्थिक गतिविधियां सिमित कर दी है। भारत के गरीवो पर इस का सवसे अधिक देखते है।
वैसे ही जैसे 2020 में भी हुआ। है अप्रवासी मजदूर अपने आप को पिछले साल के लॉकडाउन के असर से उबरने की है। फिर एक बार और लॉकडाउन की बजह से फिर एक बार फिर कोरोना ने इनकी तोड़ दी है।
सबसे ज्यादा असर असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों पर पड़ा
पिछड़े राज्यों से दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों में काम के लिए आने वाले मजदूर किसी कॉन्ट्रैक्ट के मजदूरी के रूप में काम करते हैं यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर जीमोल उन्नी की गणना के मुताबिक इस तथाकथित गैर संगठित अर्थव्यवस्था में 40 करोड से ज्यादा लोग काम कर रहे हैं इसमें सबसे बड़ी संख्या खेतिहर मजदूरों की है जो खेतों में काम करते हैं इसके बाद कॉन्ट्रैक्ट सेक्टर का नंबर आता है जिसमें लगभग 5 से 6 करोड लोग जुड़े हुए हैं
भारत का असंगठित क्षेत्र 2.9 लाख करोड़ डॉलर की घरेलू मांग आधारित अर्थव्यवस्था का लगभग आधा हिस्सा है असंगठित मजदूरों को यूनियन और राजनेताओं का सरंक्षण नहीं मिल पाता जिसकी वजह से यह सरकारी मदद में भी महरूम रहते हैं दो समय की रोटी जुटाने के बाद इनके पास इतना पैसा नहीं रहता कि वह अपनी दवा और इलाज का खर्च कर सके महामारी जैसी दौर में यह स्थिति और भी खराब हो गई है ना ही इनके पास पैसे हैं
सरकारी अनुमान के मुताबिक पिछले वित्त वर्ष में भारत की जीडीपी की वृद्धि दर 8 फ़ीसदी दर्ज की गई थी 1952 के बाद यह सबसे बड़ी गिरावट है मौजूदा वित्त वर्ष में भी दोबारा अंकों की वृद्धि दर हासिल कर पाना मुश्किल नजर आ रहा है एस एंड पी ग्लोबल के चीफ इकोनॉमिस्ट शॉन रोशे ने भारत की जीडीपी ग्रोथ के पहले के 11% के अनुमान को घटाकर 9.8% कर दिया
फिच सॉल्यूशन ने इसे 9.5% अनुमान क्या है यह सभी अनुमान ब्लूम वर्क की 11% की राय से काफी कम है रो से कहते हैं कि भारत की महामारी के पहले ही उत्पादन क्षमता की तुलना में स्थायी रूप से नुकसान हुआ है दीर्घकालीन उत्पादन घाटा लगभग जीडीपी के 10% के बराबर है
खपत में गिरावट से भारत में आमदनी की कमजोर वृद्धि
अर्थशास्त्रियों ने चेतावनी दी है की घटती घरेलू बचत और आमदनी में कमी आने से घरेलू खपत पर विपरीत असर पड़ सकता है घरेलू खपत के भारत की जीडीपी में 60 फ़ीसदी की हिस्सेदारी है मोतीलाल ओसवाल फाइनेंसियल सर्विस के इकोनॉमिस्ट निखिल गुप्ता के मुताबिक घरेलू बचत पिछले साल जून तिमाही में जीडीपी की 28.1 फ़ीसदी थी
गुप्ता के मुताबिक घरेलू बचत में धीमी बढ़ोतरी के साथ खपत में गिरावट की वजह से भारत में आमदनी की कमजोर वृद्धि हो रही है यदि ऐसा रहा तो ग्रोथ रिकवरी में पेंट अप डिमांड का योगदान भी दूसरे देशों की तुलना में सीमित रहने के आसार हैं
0 Comments